Mai Bharat Ki Beti Hu, Aao Apni Pyas Bujhalo
News Expose सिरीज़ में आपका फिर से स्वागत है, इस सिरीज़ के पिछले अंक में मैंने बिहार बंगाल दंगों, और सीरिया के बारे में बताया था कि कैसे हम गंदी राजनीति के शिकार हो रहे हैं, (पढ़ें: Dirty Politics in Hindi) इस अंक में जिस टॉपिक पर मैं बात करने वाला हूँ वो भी दरअसल गंदी राजनीति का ही एडवांस रूप है।
बलात्कार, बलात्कार, बलात्कार...
दर्दनाक मौत, भारत माता की जय, वंदे मातरम...
आजकल हमारा पूरा देश इन्हीं शब्दों को सुन रहा है, पूरा देश अपनी मासूम बेटियों को लेकर चिंतित है की कल को कहीं उनके साथ भी कोई अप्रिय घटना न घट जाए, और वे खेलने कूदने की उम्र में ही किसी नेता, किसी बाबा या किसी वहशी द्वारा रौंद न दी जाए... आज पूरी दुनियां हमपे हंस रही है, थू थू कर रही है।
वैसे तो बलात्कार की घटनाएं कोई नई नहीं है, इससे पहले भी होती रही हैं, हमारे देश में तो द्रोपदी के चीर हरण जैसी घटनाएं भी हो चुकी हैं, लेकिन अभी जो कुछ भी हो रहा है वैसा शायद पहले कभी नहीं हुआ।
ये शायद पहली बार हुआ है कि किसी 8 साल की मासूम के साथ रेप की घटना मंदिर में हुई हो, भगवान के सामने हुई हो..
ये भी पहली बार हुआ है कि किसी रेप पीड़िता के पिता को इंसाफ देने के बजाए उसे पुलिस कस्टडी में मार दिया गया हो...
ये भी पहली बार हुआ है कि दोषियों को बचाने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हों, दोषियों को बचाने के लिए भारत माता की जय के नारे लग रहे हों और तिरंगा का सहारा लिया जा रहा हो...
और ये भी पहली बार हुआ है कि जिस देश में इतनी दर्दनाक घटनाएं घटी हों उस देश के प्रधान मंत्री के मुंह से एक शब्द ना निकला हो... ज्ञात हो कि हमारे प्रधान मंत्री की गिनती खुल कर बोलने वाले नेताओं में होती है और वे औरतों के हक की बात करने का दावा करते हैं, लेकिन आज जब देश की बेटियों को उनकी जरूरत है तो वे मौन व्रत रख हुए हैं, पता नहीं वे इन घटनाओं से आहत हो कर अवसाद में चले गए हैं या ये 2019 की तैयारी है, आश्चर्य है जब जब देश में कोई ऐसी घटना घटती है जिसमें पीडित पक्ष किसी धर्म विशेष या जाति विशेष का हो तो वे खामोशी का आँचल ओढ़ कर गायब हो जाते हैं।
यहां मैं एक और बात बताना चाहूंगा मैं मोदी जी का बहुत बड़ा फॉलोवर रहा हूँ, उनके PM बनने के बाद से नहीं बल्कि उससे बहुत पहले से, उनकी पर्सनालिटी में कई ऐसी बातें हैं जो मुझे बहुत आकर्षित करती रही हैं, मैंने ट्विटर पर अकॉउंट ही बनाया था उनको फॉलो करने के लिए, मेरी नज़र में उनकी छवि एक जुझारू और ईमानदार नेता की रही है,
लेकिन जैसे जैसे मैं उनको जानता गया...... खैर जाने दिजीए।
दोस्तों, हमारा देश ऋषि मुनियों का देश रहा है, यहां औरतो को देवी का दर्जा दिया जाता है और उनकी पूजा होती है, यहां किसी अनजान लड़की को भी बहन बुलाने का रिवाज रहा है, किसी भी औरत को माता कहने का रिवाज रहा है...
लेकिन ये सब बीती बातें हो चुकी हैं, अब सब कुछ बदल चुका है, हमारा देश बदल चुका है, हमारी परंपराएँ, हमारे संस्कार और हमारी सोच बदल चुकी है, अब सबकुछ को राजनीति और धर्म जाति के चश्मे से देखा जाता है।
अब बहन सिर्फ वो होती है जो अपनी खुद की माँ की कोख से जन्मी हो, अब माँ सिर्फ वो होती है जिसने हमें जन्म दिया हो, कोई लड़की तभी हमारी बहन बेटी होती है अगर वो हमारे धर्म की हो हमारी जाति की हो... बाकी सारी लड़कियों को भोग की वस्तु समझा जाने लगा है...
निर्भया की मौत के बाद जब हम सारे लोग एकजुट होकर सड़कों पर उतरे थे तो लगा था अब ऐसा हादसा नहीं होगा, इस देश की बेटी को अब से वो सब नहीं सहना पड़ेगा जो निर्भया ने सहा... लेकिन आज के हालात को देखते हुए लगता है ये शायद कभी नहीं हो पाएगा, क्योंकि अब हम एकजुट नहीं रहे, हम टुकड़ों में बंट चुके हैं, अब हम हिंदुस्तानी नहीं रहे, अब हम राजपूत बन चुके हैं, अब हम ब्राह्मण बन चुके हैं, अब हम दलित बन चुके हैं, अब हम वैश्य बन चुके हैं, अब हम हिन्दू बन चुके हैं मुसलमान बन चुके हैं....।
हम बदल चुके हैं हमारी सोच बदल चुकी है...
जितना हमने निर्भया के लिए लड़ा था उतना न आसिफा के लिए लड़े ना उन्नाव की बेटी के लिए लड़े, लड़ें भी तो क्यों लड़ें?
आसिफा मुसलमान के घर जन्मी थी तो हम हिन्दू होकर मुसलमान के लिए क्यों लड़ें, उन्नाव की बेटी हिन्दू के घर जन्मी थी तो हम मुसलमान होकर हिन्दू के लिए क्यों लड़ें?? जिसके साथ जो हो रहा है होने दो बस ऊपर वाला मेरी बेटी को बचाए रखे.. यही आज की हमारी मानसिकता हो चुकी है, हम सिर्फ गिरे नहीं हैं बल्कि गन्दे नाले में जा चुके हैं।
अब बेटियों के लिए सलामत रहने का बस एक ही ऑप्शन रह गया है कि वे पैदा ही ना हों...।
अभी तक की जानकारी के मुताबिक आसिफा को सिर्फ इसलिये वहशीपन का शिकार होना पड़ा ताकि वो जिस समुदाय से आती है उनको सबक सिखाया जाए, वे लोग जगह छोड़ कर चले जाएं,
8 साल की मासूम को क्या पता धर्म क्या होता है जाति क्या होती है? और कितने शर्म की बात है कि इस हैवानियत का मास्टरमाइंड एक रिटायर्ड अधिकारी है, और उससे भी बड़ी बात सारा खेल मंदिर के अंदर खेला गया, उस मासूम को नशे की दवा दे दे कर दरिंदे उसके साथ बलात्कार करते रहे और बाद में सिर कुचल कर मार डाला।
शर्म आती है खुद को ऐसे समाज का हिस्सा कहते हुए।
उन्नाव की बेटी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, वो ज़िंदा तो बच गयी पर इंसाफ मांगे तो किससे? उसके पिता इंसाफ मांगने गए थे तो उनको सीधा ऊपर ही भेज दिया गया।
कहां है वो लोग जो कुछ वक्त पहले पद्मावती की इज्जत बचाने के लिए सड़कों पर उतरे थे ?
अब कहाँ गई करनी सेना या बजरंग दल ?
पद्मावत फिल्म का सीन ज़्यादा शर्मनाक था या फिर एक जिंदा बेटी का
गैंग रेप ?
क्या इन बेटियों की इज्जत से उनका कोई लेना देना नहीं ?
अभी भी वक्त है संभल जाओ,
अपनी नीची सोच और गंदी राजनीति से बाहर आओ,
वरना कल को तुम्हारी बहन बेटियां भी सरे बाज़ार लुट जाएंगी और तुम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाओगे,
क्योंकि आज तुम्हारी मानसिकता अपाहिज है, कल को किसी और की मानसिकता अपाहिज हो चुकी होगी।
बलात्कार, बलात्कार, बलात्कार...
दर्दनाक मौत, भारत माता की जय, वंदे मातरम...
आजकल हमारा पूरा देश इन्हीं शब्दों को सुन रहा है, पूरा देश अपनी मासूम बेटियों को लेकर चिंतित है की कल को कहीं उनके साथ भी कोई अप्रिय घटना न घट जाए, और वे खेलने कूदने की उम्र में ही किसी नेता, किसी बाबा या किसी वहशी द्वारा रौंद न दी जाए... आज पूरी दुनियां हमपे हंस रही है, थू थू कर रही है।
वैसे तो बलात्कार की घटनाएं कोई नई नहीं है, इससे पहले भी होती रही हैं, हमारे देश में तो द्रोपदी के चीर हरण जैसी घटनाएं भी हो चुकी हैं, लेकिन अभी जो कुछ भी हो रहा है वैसा शायद पहले कभी नहीं हुआ।
ये भी पहली बार हुआ है कि किसी रेप पीड़िता के पिता को इंसाफ देने के बजाए उसे पुलिस कस्टडी में मार दिया गया हो...
ये भी पहली बार हुआ है कि दोषियों को बचाने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हों, दोषियों को बचाने के लिए भारत माता की जय के नारे लग रहे हों और तिरंगा का सहारा लिया जा रहा हो...
यहां मैं एक और बात बताना चाहूंगा मैं मोदी जी का बहुत बड़ा फॉलोवर रहा हूँ, उनके PM बनने के बाद से नहीं बल्कि उससे बहुत पहले से, उनकी पर्सनालिटी में कई ऐसी बातें हैं जो मुझे बहुत आकर्षित करती रही हैं, मैंने ट्विटर पर अकॉउंट ही बनाया था उनको फॉलो करने के लिए, मेरी नज़र में उनकी छवि एक जुझारू और ईमानदार नेता की रही है,
लेकिन जैसे जैसे मैं उनको जानता गया...... खैर जाने दिजीए।
दोस्तों, हमारा देश ऋषि मुनियों का देश रहा है, यहां औरतो को देवी का दर्जा दिया जाता है और उनकी पूजा होती है, यहां किसी अनजान लड़की को भी बहन बुलाने का रिवाज रहा है, किसी भी औरत को माता कहने का रिवाज रहा है...
लेकिन ये सब बीती बातें हो चुकी हैं, अब सब कुछ बदल चुका है, हमारा देश बदल चुका है, हमारी परंपराएँ, हमारे संस्कार और हमारी सोच बदल चुकी है, अब सबकुछ को राजनीति और धर्म जाति के चश्मे से देखा जाता है।
अब बहन सिर्फ वो होती है जो अपनी खुद की माँ की कोख से जन्मी हो, अब माँ सिर्फ वो होती है जिसने हमें जन्म दिया हो, कोई लड़की तभी हमारी बहन बेटी होती है अगर वो हमारे धर्म की हो हमारी जाति की हो... बाकी सारी लड़कियों को भोग की वस्तु समझा जाने लगा है...
निर्भया की मौत के बाद जब हम सारे लोग एकजुट होकर सड़कों पर उतरे थे तो लगा था अब ऐसा हादसा नहीं होगा, इस देश की बेटी को अब से वो सब नहीं सहना पड़ेगा जो निर्भया ने सहा... लेकिन आज के हालात को देखते हुए लगता है ये शायद कभी नहीं हो पाएगा, क्योंकि अब हम एकजुट नहीं रहे, हम टुकड़ों में बंट चुके हैं, अब हम हिंदुस्तानी नहीं रहे, अब हम राजपूत बन चुके हैं, अब हम ब्राह्मण बन चुके हैं, अब हम दलित बन चुके हैं, अब हम वैश्य बन चुके हैं, अब हम हिन्दू बन चुके हैं मुसलमान बन चुके हैं....।
हम बदल चुके हैं हमारी सोच बदल चुकी है...
जितना हमने निर्भया के लिए लड़ा था उतना न आसिफा के लिए लड़े ना उन्नाव की बेटी के लिए लड़े, लड़ें भी तो क्यों लड़ें?
आसिफा मुसलमान के घर जन्मी थी तो हम हिन्दू होकर मुसलमान के लिए क्यों लड़ें, उन्नाव की बेटी हिन्दू के घर जन्मी थी तो हम मुसलमान होकर हिन्दू के लिए क्यों लड़ें?? जिसके साथ जो हो रहा है होने दो बस ऊपर वाला मेरी बेटी को बचाए रखे.. यही आज की हमारी मानसिकता हो चुकी है, हम सिर्फ गिरे नहीं हैं बल्कि गन्दे नाले में जा चुके हैं।
अब बेटियों के लिए सलामत रहने का बस एक ही ऑप्शन रह गया है कि वे पैदा ही ना हों...।
अभी तक की जानकारी के मुताबिक आसिफा को सिर्फ इसलिये वहशीपन का शिकार होना पड़ा ताकि वो जिस समुदाय से आती है उनको सबक सिखाया जाए, वे लोग जगह छोड़ कर चले जाएं,
8 साल की मासूम को क्या पता धर्म क्या होता है जाति क्या होती है? और कितने शर्म की बात है कि इस हैवानियत का मास्टरमाइंड एक रिटायर्ड अधिकारी है, और उससे भी बड़ी बात सारा खेल मंदिर के अंदर खेला गया, उस मासूम को नशे की दवा दे दे कर दरिंदे उसके साथ बलात्कार करते रहे और बाद में सिर कुचल कर मार डाला।
शर्म आती है खुद को ऐसे समाज का हिस्सा कहते हुए।
उन्नाव की बेटी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, वो ज़िंदा तो बच गयी पर इंसाफ मांगे तो किससे? उसके पिता इंसाफ मांगने गए थे तो उनको सीधा ऊपर ही भेज दिया गया।
कहां है वो लोग जो कुछ वक्त पहले पद्मावती की इज्जत बचाने के लिए सड़कों पर उतरे थे ?
अब कहाँ गई करनी सेना या बजरंग दल ?
पद्मावत फिल्म का सीन ज़्यादा शर्मनाक था या फिर एक जिंदा बेटी का
गैंग रेप ?
क्या इन बेटियों की इज्जत से उनका कोई लेना देना नहीं ?
अभी भी वक्त है संभल जाओ,
अपनी नीची सोच और गंदी राजनीति से बाहर आओ,
वरना कल को तुम्हारी बहन बेटियां भी सरे बाज़ार लुट जाएंगी और तुम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाओगे,
क्योंकि आज तुम्हारी मानसिकता अपाहिज है, कल को किसी और की मानसिकता अपाहिज हो चुकी होगी।
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